तू हुआ नहीं है राख अभी
है धधक रही है आग अभी
इज्जत के लिए कुछ करना है
है बची हुई है साख अभी।
इस मिट्टी में तूने जनम लिए
सब अच्छे-बुरे करम किए
इस मिट्टी की लाज बचानी है
तुम्हे पहली गोली खानी है।
सौगंध तुम्हे है राखी की
तुम्हे कसम है वर्दी खाकी की
सेना की शान ना कम होगा
जीवन जाने का ना ग़म होगा।
हारे मन से कुछ होता नहीं
रणछोड़ के लिए कोई रोता नहीं
तुम अड़े तो शत्रु में भय होगा
तुम लड़े तो तेरी जय होगा।
आकाश कुमार "मंजीत"
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