Thursday, May 20, 2010

लौट कर आना नीरू

कविता समर्पित हैं हमारी पूर्व साथी निरुपमा को जो हमारे बीच हो कर भी हैं


लौट कर आना नीरू
तुम चली गई यूँ ही सबसे रूठ कर
बिना कुछ कहे बिना कुछ बोले बिना लड़े
तुम चली गई नीरू
तुम्हे जाना पड़ा जानती हो क्यूँ
मैं जानती हूँ नीरू क्यूंकि मैं भी तुम्हारी ही तरह औरत हूँ
तुम्हे जाना पड़ा क्यूंकि तुम समर्थ थी स्वतंत्र थी
तुम थी एक सोच लिए तुम्हारी अपनी पसंद थी
इसका कर्ज तुमने चुकाया और चुकाना भी था
क्यूंकि तुम एक औरत थी ना नीरू
लेकिन तुम आना, फिर से आना नीरू
और मैं जानती हूँ
तुम आओगी, तुम लौट कर आओगी मुझ में
हर उस लड़की में जो तुम जैसी है
मासूम निष्पक्ष अपने दम पर जीने की चाह लिए
तुम आओगी उन हजारो आँखों में
जो तुम्हारी चमकीली आँखों सी चमक लिए है
तुम आओगी उन दिलों में जो तुम सी चाह लिए हैं
उन पंखो में जो तुम्हारी तरह उड़ने को तैयार खड़े हैं
तुम आओगी नीरू
लौट कर आना नीरु

'स्मिता मुग्धा
दैनिक भास्कर

4 comments:

  1. itni sunder rachna par koi tippani nahi,

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  2. सुन्दर कविता. निरुपमा कभी मर नहीं सकती, बशर्ते की हम उसके बलिदान को न भूले.

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  3. Really, she was very intelligent girl. We can't forget her.

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  4. Nirupmaa ka balidaan yaad rakkha jaaegaa,,,
    har pal,, har dm....

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