यह कविता समर्पित हैं हमारी पूर्व साथी निरुपमा को जो हमारे बीच न हो कर भी हैं
लौट कर आना नीरू
तुम चली गई यूँ ही सबसे रूठ कर
बिना कुछ कहे बिना कुछ बोले बिना लड़े
तुम चली गई नीरू
तुम्हे जाना पड़ा जानती हो क्यूँ
मैं जानती हूँ नीरू क्यूंकि मैं भी तुम्हारी ही तरह औरत हूँ
तुम्हे जाना पड़ा क्यूंकि तुम समर्थ थी स्वतंत्र थी
तुम थी एक सोच लिए तुम्हारी अपनी पसंद थी
इसका कर्ज तुमने चुकाया और चुकाना भी था
क्यूंकि तुम एक औरत थी ना नीरू
लेकिन तुम आना, फिर से आना नीरू
और मैं जानती हूँ
तुम आओगी, तुम लौट कर आओगी मुझ में
हर उस लड़की में जो तुम जैसी है
मासूम निष्पक्ष अपने दम पर जीने की चाह लिए
तुम आओगी उन हजारो आँखों में
जो तुम्हारी चमकीली आँखों सी चमक लिए है
तुम आओगी उन दिलों में जो तुम सी चाह लिए हैं
उन पंखो में जो तुम्हारी तरह उड़ने को तैयार खड़े हैं
तुम आओगी नीरू
लौट कर आना नीरु
'स्मिता मुग्धा
दैनिक भास्कर
itni sunder rachna par koi tippani nahi,
ReplyDeleteसुन्दर कविता. निरुपमा कभी मर नहीं सकती, बशर्ते की हम उसके बलिदान को न भूले.
ReplyDeleteReally, she was very intelligent girl. We can't forget her.
ReplyDeleteNirupmaa ka balidaan yaad rakkha jaaegaa,,,
ReplyDeletehar pal,, har dm....