द्रविड़ इस बारे में क्या सोचते हैं यह कहना थोड़ा मुश्किल है । मगर यदि द्रविड़ अपने करियर में कुछ और उपलब्धियां जोड़ना चाहें तो उन्हें अपने खेल और प्रदर्शन में कुछ बदलाव करने होंगे।
भविष्य की नौजवान टीम बनाने की खातिर जिस शख्स की बलि दी गई आखिर उसे वापिस क्यों बुलाया जा रहा है? सौरभ गांगुली को बी तो इसी नीति के तहत बहार का रास्ता दिखाया गया। मगर हमने इन बदलावों की आलोचना कभी नही की। टीम को एक नए , फ्रेश और जोशीले रूप-रंग में समय के साथ बदलने के शायद हम भी इच्छुक रहे हैं।
पिछले साल में टीम का बेहतरीन प्रदर्शन दलीप वेंगसरकर के हिम्मत वाले फैसलों का ही नतीजा रहा। युवाओं को आगे लाने की नीति का सभी ने स्वागत किया। टीम ने पिछले साल लगभग हर सीरीज़ जीती। फ़िर अचानक टीम में एक बौखलाहट की स्थिति क्यों? क्या टी - २० वर्ल्ड कप में टीम का खराब प्रदर्शन इसका कारण है या फ़िर २० ओवर के इस खेल में टीम की कमजोरियां जग ज़ाहिर होने लगी हैं? और शायद इसी लिए द्रविड़ का चुनाव मिडिल आर्डर की मजबूती के लिए चयनकर्ताओं की मजबूरी बन गया।
द्रविड़ के चुनाव के पीछे यदि चयनकर्ताओं की यही सोच है तो इसे एक लघुकालीन उपाय माना जाना चाहिए। सिर्फ़ टी-२० वर्ल्ड कप में हार से सभी की सांसें क्यों रुकने लगीं? क्यों सिर्फ़ एक सीरीज़ में हार से एक विजेता टीम से बिश्वास उठने लग गया??
श्रीकांत समेत चयनकर्ताओं का यह फ़ैसला भविष्य की युवा टीम की ओर आगे बढ़ने की खातिर पीछे को लिया एक कदम है।
just a good start again. Criticise next time.
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