Monday, January 25, 2010

वे अमन के खिलाफ हैं

साल-दर-साल क्रिकेट प्रेमियों में आईपीएल का खुमार बढ़ता जा रहा है। आईपीएल-3 के लिए क्रिकेट खिलाड़ियों की नीलामी 19 जनवरी को मुकर्रर की गई। आठ फ्रैंचाईज़ियां बोली लगाने के लिए तैयार थीं। खिलाड़ियों की खरीदारी में उघोगपति विजय माल्या और नेस वाडिया से लेकर प्रीति ज़िंटा और शिल्पा शेट्टी कुंद्रा जैसे फिल्मी सितारे शुमार थे। बोली शुरु हुई और सबसे मँहगे खिलाड़ी के तौर पर न्यूज़ीलैंड के शेन बांड और वेस्टइंडीज़ के पोलार्ड का नाम आया। खिलाड़ियों की खरीदारी पूरी हुई लेकिन आईपीएल-3 में भाग ले रही किसी भी टीम की सूची में पाकिस्तान के किसी भी खिलाड़ी का नाम नहीं आया। ऐसा नहीं है कि बोली के लिए पाकिस्तान के खिलाड़ियों का नामाकंन नहीं हुआ था। पाकिस्तान के कुल ग्यारह खिलाड़ियों का बोली का हिस्सा थे लेकिन फिर भी किसी फ्रैंचाइज़ी ने उनमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। आईपीएल पूरी तरह से एक व्यवसायिक प्रतियोगिता है और फ्रैंचाइज़ी टीमें खिलाड़ियों के प्रदर्शन को देखकर उनकी बोली लगाती हैं। इस लिहाज़ से देखा जाए तो पाकिस्तानी खिलाड़ियों को टाप लिस्ट में होना चाहिए था। पाकिस्तान बीसम- बीस क्रिकेट का विश्व चैंपियन है और आईपीएल- 1 के मैन आफ द सिरीज़ पाकिस्तान के तेज़ गेंदबाज़ सोहेल तनवीर थे। फ्रैंचाइज़ी टीमों का तर्क है पाक खिलाड़ियों को वीज़ा मिलना निश्चित नहीं था। और किसी खिलाड़ी के उपर दांव लगाने के बाद उसका टीम में शामिल नहीं होना हमारे लिए परेशानी का सबब बन सकता था। अगर यह बात सही है तो फिर बोली के लिए पाक खिलाड़ियों का चयन ही क्यों किया गया? आईपीएल के नियमों के मुताबिक, अगर कोई फ्रैंचाइज़ी टीम किसी खिलाड़ी में दिलचस्पी रखती है तो उसका नाम बोली की सूची में होना ज़रुरी है। पाकिस्तान के 11 खिलाड़ियों का नाम सूची में छः जनवरी को डाला गया जो कि बिना किसी फ्रैंचाइज़ी की दिलचस्पी के मुमकिन नहीं था। अब सवाल यह है कि दिलचस्पी होने के बावजूद किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी के लिए बोली क्यों नहीं लगी? दूसरा तर्क टूर्नामेंट में पाक खिलाड़ियों की उपलब्धता को लेकर दिया जा रहा है। लेकिन यह तर्क सिर्फ पाक खिलाड़ियों को ही ध्यान में रखकर क्यों दिया जा रहा है। ऐसा तो किसी भी खिलाड़ी के साथ हो सकता है कि उसे बीच में ही टूर्नामेंट छोड़कर वापस जाना पड़े। गौरतलब है कि आईपीएल- 2 के सबसे मंहगे खिलाड़ी केविन पीटरसन और एंड्रयू फ्लिंटाफ को टूर्नामेंट के बीच में ही वापस जाना पड़ा था। अफसोस इस बात का है कि फ्रैंचाइज़ी टीमों की सारी बातें मनगढ़ंत और सिर्फ एक ढकोसला है। भारत सरकार ने आइपीएल-3 में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के 17 खिलाड़ियों को वीज़ा जारी किये। ये वीज़ा दिसम्बर, 2009 और जनवरी, 2010 में जारी किये गए। ऐसे में वीज़ा न जारी होने की बात भी पूरी तरह से निराधार है।

खैर मुद्दे की बात, पाकिस्तानी खिलाड़ियों की टूर्नामेंट में बोली न लगने से दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल बन गया है। नतीजतन, पाकिस्तान के नेशनल एसेंबली की अध्यक्ष फहमीदा मिर्ज़ा ने संसदीय दल का भारत- दौरा रद्द कर दिया। पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक का कहना है कि भारत ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों का अपमान किया है और इससे यह पता चलता है कि भारत दोनों देशों के बीच शांति- प्रक्रिया को लेकर गंभीर नहीं है। मलिक ने यह भी कहा कि जो पाकिस्तान का सम्मान नहीं करेगा, पाकिस्तान भी उसके साथ वैसा ही व्यवहार करेगा। भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने पाकिस्तान की प्रतिक्रिया का जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान खेल को राजनीति से जोड़कर न देखे। आईपीएल में जो कुछ हुआ उसका भारत सरकार से कोई लेना देना नहीं है। ठीक बात है कि खेल को सियासी चश्मे से नहीं देखना चाहिए। लेकिन दोनों ओर से खेल के मुद्दे पर हो रही बयानबाज़ी ने सियासी रुख अख्तियार कर लिया है। पाकिस्तान के केबल आपरेटरों ने आईपीएल का प्रसारण करने वाले टीवी चैनलों का बहिष्कार करने की बात कही है। जमात-ए-इस्लामी के मुखिया मुनव्वर हसन ने भारतीय फिल्मों और उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। वहीं पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल में न लेने के पीछे यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि पाक खिलाड़ियों के खेलने पर भगवा संगठन मैच को बाधित कर सकते हैं। आईपीएल आयोजन के पीछे की सोच पैसा कमाना है और इस सोच ने दोनों देशों के नाज़ुक सम्बंधों को नज़रअंदाज़ किया है जिसकी वजह से खेल ने सियासी रंग ले लिया और दोनो देशों के बीच तनाव का माहौल बन गया। और सिर्फ तनाव ही नहीं बढ़ा बल्कि शांति प्रक्रिया को भी प्रभावित किया। भारत और पाकिस्तान के सम्बधं अचानक ही खराब नहीं हुए हैं। मुबंई हमले के बाद भारत- पाक के बीच तनाव बढ़ा गया था और फिलहाल दोनों देशों के सम्बंध बेहद नाज़ुक मोड़ पर है। आईपीएल प्रबंधन चाहता तो इसे मुद्दा बनने से बचा सकता था। प्रबंधन देश के राजनैतिक हालात को ध्यान में रखकर पाकिस्तान के खिलाड़ियों को पहले ही मना कर सकता था। इस टूर्नामेंट का दूसरा मकसद खेल के ज़रिये लोगों का मनोरंजन करना है लेकिन आईपीएल ने दोनों देशों के खेल प्रेमियों को भी मायूस किया है। बहरहाल आईपीएल- 3 कितना सफल होता है, यह लोगों का कितना मनोरंजन करता है, आईपीएल का भविष्य क्या है ये अलग बात है। लेकिन आईपीएल ने उन ताकतों के हाथ में एक मुद्दा जरुर दे दिया है जो भारत- पाकिस्तान के बीच अमन कायम होते नहीं देख सकते। इसमें कट्टरपंथी ताकतों से लेकर इस्लामाबाद-नई दिल्ली के सियासी हुक्मरान तक शामिल हैं।

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