Tuesday, December 29, 2009

उलझ कर रह जाएगा विकास

छोटे राज्यों की माँग लगातार बढ़ती ही जा रही है। कहा जा रहा है कि इससे पिछड़े इलाकों का विकास होगा। मेरा मानना है कि इन राज्यों के बँटवारे पर जितना धन खर्च होगा, वह इन राज्यों के पिछड़े इलाकों में लग जाए तो इनका विकास हो जाएगा।

ऐसा नहीं कि बँटवारा होते ही इन इलाकों में विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। बँटवारे की घोषणा होने के बाद तीन-चार साल बँटवारे की प्रक्रिया पूरी होने में लगेंगे। इसके बाद, बिहार और झारखंड की तरह अधिकारी दोनों राज्यों के बीच झुलते रहेंगे। यही नहीं, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी पाँच सालों तक चलेगा, हो सकता है इससे भी लंबा चले। इस बीच आम जनता का विकास हो-न-हो, नेताओं का विकास जरूर हो जाएगा। नये मंत्रालय बनेगें, नये विभागों का गठन होगा और लाल बत्ती वाली नई गाड़ियाँ मिलेंगी। हो सकता है, इनमें से कोई नया ‘मधु कोड़ा’ भी बन जाए।

इन राजनीतिक दाँव-पेंचों के बीच वास्तविक विकास कहीं उलझ कर रह जाएगा और आम जनता की हालत वहीं रहेगी जो नया राज्य बनने के पहले थी।

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