Tuesday, August 4, 2009

माँ होने का मतलब

भड़ास में कल एक पोस्ट "क्या वो भी माँ थी" पढ़ी. उसमें किसी अज्ञात महिला के अपने नवजात शिशु को फिर से जंगल में फेंके जाने पर चिंता जताई गयी है. उस महिला के माँ कहलाने पर प्रश्न उठाया गया है. जानवरों की दुनिया का उदाहरण देकर उसकी तुच्छता साबित करने की कोशिश की गयी है.

सवाल यह है कि माँ को, उसके ममतत्व को महान बताने, बनाने के पीछे क्या इरादे रहे हैं? किसी लडकी का शादी के बिना ही माँ बन जाना उसके लिए जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप बन जाता है. एक बच्चे को जन्म देने के लिए उसके पास शादी नाम का प्रमाण-पत्र होना जरूरी होता है(ताकि बाप का नाम पता चल सके). इस तरह अगर किसी बच्चे के पैदा होने के बाद उसका बाप उसे अपना नाम नहीं देना चाहता तो उस बच्चे की माँ उसे पैदा करके अपने और बच्चे के लिए क्यों अकेली मुसीबत मोल ले? जानवरों की दुनिया में बाप की पहचान मायने नहीं रखती. अगर वहां भी बाप की पहचान जरूरी हो जाये तो भी शायद पिता जानवर दुम दबाकर उस तरह नहीं भागेगा जिस तरह इन्सान भागा करता है.
आखिर क्यों और कब से इस उपाय की जरूरत पड़ी? महाभारत काल में भी कुंती को शादी से पहले ही कर्ण के पैदा हो जाने पर उसे नदी में बहाना पड़ा था. अगर कुंती कर्ण को अपना लेती तो क्या उसे सम्मानजनक जीवन जीने दिया जाता? कुंती को भी उस समय में कर्ण के पिता का नाम पूछे जाने का डर न होता तो बहुत संभव था कि वो उसे अपना लेती. कुंती को भी उस समय में निर्दयी कहा गया था. उसी तरह के समाज में रहते हुए उसी तरह के तरीकों को आज भी अपनाया जाता है.

2 comments:

  1. ek bahut hi achchhi lekh jisame tark sangat prasan kiye gaye hai ........chintan karane ko majboor karata lekh

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  2. bharat je apne bahut sahi bat kahi hai lekin hamare is samaj ko kaun samjaye ki aise chig hone par unhe kaise swikar kare or iske liya kya upay hai.
    kya kare wo ladki jo is me phas gayi hai agar wo aisa na karti to sayad samaj to usse jine ka bhi adhkar chin leta aur is par hum jaise intellectal log bahut khush hote.

    pavitra kumar

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